गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संगम पर स्थित सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा ज्वारीय खारे पानी का मैंग्रोव वन है। भारत और बांग्लादेश के लगभग 10,000 वर्ग कि.मी. में फैला यह वन, किसी परिकथा की काल्पनिक दुनिया से कम नहीं।
घने मैंग्रोव वन, ज्वारीय जलमार्ग, नम-भूमि और द्वीप, जिनमें धरती, आकाश और पानी में रहने वाले अद्भुत जीव-जंतु निवास करते हैं। पर मानव द्वारा बनायीं गयी ऐसी कई चीज़े हैं जो आज सुंदरबन को नुक्सान पंहुचा रही हैं- प्रदूषण, नदियों पर बांधों का निर्माण, भूमि खनन और इन सब में सबसे बड़ा नाम – जलवायु परिवर्तन।
अद्वितीय सुन्दरी
सुंदरबन का नाम यहां पाए जाने वाले सुन्दरी पेड़ों के कारण हैं। इन पेड़ों की खास बात है उनकी हाथ-पांव सी दिखने वाली जड़ें जो पानी से बाहर सांस ले सकती हैं और जलमग्न स्थिति में भी ऑक्सीजन ग्रहण करने में मदद करती हैं। इनकी पत्तियां मोटी और मोमयुक्त होती हैं, जो पानी की कमी और उच्च लवणता के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती हैं। पर जलवायु परिवर्तन इनकी क्षमताओं को चुनौती दे रहा है।
पिछले कुछ दशकों में बढ़ते समुद्र स्तर और मीठे पानी के प्रवाह में कमी के कारण सुंदरबन में मिट्टी और पानी की लवणता बढ़ रही है। सुंदरी पेड़ अधिक लवणता सहन नहीं कर पाते, जिससे उनका विकास रुक रहा है और कई स्थानों पर ये पेड़ मर रहे हैं।
बांग्लादेश स्पेस रिसर्च एंड रिमोट सेंसिंग ऑर्गनाइजेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि चांदपाई रेंज जैसे क्षेत्रों में सुन्दरी पेड़ों का क्षेत्र 1988 में 16,000 हेक्टेयर से घटकर 2022 में 12,500 हेक्टेयर हो गया है। इन पेड़ों की जगह अब अधिक लवणता-सहनशील प्रजातियां, जैसे ‘कांकरा’ ले रही हैं। यानि ना केवल सुंदरबन के मूल पेड़ कम हो रहे हैं बल्कि इस पूरे वन का स्वरुप ही बदलता जा रहा है।
यह इसलिए एक बड़ी खतरे कि घंटी है क्योंकि सुंदरी पेड़ों के इर्दगिर्द यहां के जीव-जंतु और यहां रह रहे लोगों का पूरा संसार बसता है। मछली, मेंढक, कछुए इन पेड़ों के बीच अपने नवजात शिशुओं को जन्म देते है। सुंदरी पेड़ समुद्र से सटे गाँवों को समुद्र की ऊँची लहरें और समुद्री आंधियों, चक्रवातों से बचाते हैं।
अब जलवायु परिवर्तन के कारण सुंदरबन में चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है। अम्फान, 2020; यास, 2021; बिपरजॉय, 2023; ये चक्रवात सुंदरबन क्षेत्र में भारी नुकसान का कारण बने, जिससे जीवन और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव – फोटो : तपन मुखर्जी
जीव-जंतुओं को खतरा
सुंदरबन दुनिया के कुछ अलबेले प्राणियों का भी घर हैं जैसे की मछुआरी बिल्ली, खारे पानी वाले मगरमच्छ, ओलिव रिडले टर्टल और गंगा नदी डॉलफिन। गंगा नदी डॉल्फिन या जिन्हें ‘सुसु’ भी कहा जाता है, भारत के राष्ट्रीय जलीय जीव हैं।
1879 से प्राप्त अभिलेखों के अनुसार, मीठे पानी में रहने वाले ये स्तनधारी जीव बंगाल की खाड़ी से लेकर हिमालय की तराई तक तैरते थे। एक समय था जब ये सुंदरबन में आमरूप से देखे जा सकते थे परन्तु अब क्योंकि मौसम के परिवर्तन के चलते पानी की लवणता बढ़ रही हैं, इनके आवास सिमटते जा रहे हैं।
पर क्या खारे पानी के मगरमच्छ अपनी संख्या बढ़ा पा रहे हैं? दुर्भाग्यवश, नहीं। इन मगरमच्छों को भी जीवित रहने के लिए और प्रजनन के लिए मीठे पानी के क्षेत्र की आवश्यकता होती है। उच्च तापमान अंडों के इनक्यूबेशन पर प्रभाव डालता है, जिससे बच्चे मगरमच्छों के लिंग अनुपात में असंतुलन हो सकता है।
यदि अंडों का तापमान 30°C से कम होता है, तो अधिकतर मादा, और 33°C या अधिक तापमान पर अधिकतर नर मगरमच्छ बनते हैं। पृथ्वी के बढ़ते तापमान का अर्थ हैं केवल नर मगरमच्छ।
सुंदरबन एक ऐसी प्राकृतिक धरोहर हैं जिसे हम अपनी तकनिकी काबिलियत के बावजूद कभी कृत्रिम रूप से नहीं बना पाएंगे। पर इस बढ़ते संकट से अब भी जुझा जा सकता है। मैन्ग्रोव वनों का पुनरोपण और संरक्षण, कटाव और लवणता को नियंत्रित करने के लिए टिकाऊ जल और भूमि प्रबंधन, स्थानीय लोगों की भागीदारी आज उस वन को बचा सकते है जिसने सदियों से इस क्षेत्र को बचा कर रखा है।
Original Publication: Amar Ujala
Date: 10 March, 2025
Link: सुंदरबन